Friday , 20 September 2024

‘अटल बिहारी वाजपेयी’ : एक ऐसा राजनेता- जो अपनी ही मौत पर लिख गया कविता

नई दिल्‍ली: भारतीय राजनीति के पटल पर एक ‘अटल’ राजनीतिज्ञ का नाम जब भी लिया जाएगा, तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम शायद सबसे ऊपर लिया जाएगा। एक ऐसा राजनेता, जिसे उसकी पार्टी के लिए नहीं बल्कि उसके व्‍यक्तित्‍व के लिए हमेशा याद किया जाएगा। अटल बिहारी वाजपेयी ने आज दिल्‍ली के एम्‍स अस्‍पताल में अपनी आखिरी सांस ली है। 93 साल की उम्र में देश का यह दिग्‍गज नेता दुनिया छोड़कर चला गया। अक्‍सर कहते थे कि वह राजनेता बाद में हैं, कवि पहले हैं। शायद यही वजह थी कि चाहे देश के विभाजन पर कविता लिखनी हो या फिर किसी अन्‍य विषय पर, उनके पैने शब्‍दों का हर कोई कायल हो गया था। कहते हैं, ‘जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि..’ और ऐसा ही अटल बिहारी वाजपेयी ने किया जिन्‍होंने अपने जीते हुए ही अपनी मौत पर एक कविता लिख डाली थी.

 

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।

मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

 

दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी ने यह कविता तब लिखी थी, जब डॉक्‍टरों ने उन्‍हें सर्जरी की सलाह दी थी। लेकिन उनकी तकलीफ भी उनके भीतर के कवि को सुला नहीं पाई थी और रात भर की बेचैनी और उथल-पुथल के बाद इस कविता का जन्‍म हुआ था। लेकिन इस कविता से साफ है कि मौत, जो सब को मौन कर देती है, वह भी इस शख्सियत के इरादों को डिगा नहीं पाई थी।

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