चंडीगढ़, 147 जून। चंडीगढ़ के एक बजुर्ग ने सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया के आलाधिकारियों पर धक्केशाही कर उन्हें नौकरी से बाहर निकाले जाने के गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि इन्साफ की लड़ाई लड़ते लड़ते अब वो थक चुके हैं, लेकिन उन्हें इन्साफ नहीं मिल रहा है। इससे परेशान हो कर उन्होंने इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है।
चंडीगढ़ के निवासी मनमोहन सिंह ने प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया के आलाधिकारियों की धक्केशाही के चलते उसे वर्ष 2000 में नौकरी से बाहर कर दिया गया था। जिसके कारण उन पर व उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ सा गिर गया। उन्होंने पत्रकारों के माध्यम से अपनी परेशानी साँझा करते हुए कहा कि उन्हें बैंक से निकाले जाने के बाद जो भी मदद मिली है वो दोस्तों और रिश्तेदारों से ही मिली है। बैंक से उनको कभी कोई भी मदद नहीं मिली।
मनमोहन सिंह ने बताया की वर्ष 1996 में उन्होंने बतौर ऑथोराईज्ड कलेक्शन एजेंट ज्वाइन किया था। उनकी जॉब बैंक में लगभग 18 वर्षों तक ठीकठाक चली। क्योंकि वर्ष 1996 में बैंक के आलाधिकारियों ने बिना कोई नोटिस दिए उन्हें जॉब से बाहर निकाल दिया। इन 18 वर्षो के दौरान उन्होंने अपना काम बेहद ही निष्ठां और ईमानदारी से किया। उन्होंने बैंक के आलाधिकारियों से कई बार यह जानने की बड़ी कोशिश की कि उन्हें किस आधार पर जॉब से निकाला गया है, लेकिन कभी भी उन्हें उचित जबाब नहीं मिला। फिर वर्ष 2000 में उनका केस यूनियन स्तर पर माननीय आंध्रा प्रदेश उच्च न्यायलय में लड़ा गया। लगभग 04 वर्ष तक चले केस के बाद आंध्रा प्रदेश उच्च न्यायलय ने यह फैसला दिया कि उनकी जॉब पक्की है और वे बैंक के पक्के एम्पलॉई के तौर पर माने जाये। लेकिन बैंक प्रबंधन ने आंध्रा प्रदेश उच्च न्यायलय के उस फैसले को भी दरकिनार कर दिया और उन्हें नौकरी पर दुवारा रखने से मना कर दिया। मनमोहन सिंह ने आगे बताया कि फिर उन्होंने अपनी लड़ाई को खुद लड़ते हुए माननीय पंजाब एन्ड हरियाणा उच्च न्यायलय में अपील डाली और मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट और माननीय आंध्रा प्रदेश उच्च न्यायलय कि एक जजमेंट का हवाला भी पेश किया। माननीय पंजाब एन्ड हरियाणा उच्च न्यायलय के माननीय जज कन्नन ने भी फैसला उनके हक़ में सुनाया और बैंक प्रबंधन को आदेश दिए कि उन्हें उचित मान सम्मान दिया जाये और उनकी जॉब के अनुसार उन्हें बेनिफिट्स दिए जाये। लेकिन बैंक प्रबंधन ने यहाँ भी कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए उन्हें कोई बेनिफिट्स देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि अब वो उम्र के इस मुकाम पर है कि न तो भाग दौड़ कर सकते है और न ही कोर्ट कचहरी के चक्कर काट सकते है। न तो उन्हें आँखों से अब साफ़ दिखाई देता है और न ही वो अब ठीक से चल फिर सकते है।
उन्होंने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में दखल देने की भी गुहार लगाई है । उन्होंने कहा कि अगर उन्हें इन्साफ नहीं मिल सकता तो इस तरह से जीने का क्या फायदा, इस लाचारी और भुखमरी में जीने से तो मर जाना ज्यादा अच्छा है । उन्होंने कहा कि उन्हें इच्छा मृत्यु कि इजाजत दे दी जाये, या फिर गोली मार दी जाये।