यमुनानगर, 28 मई। जिसको दिखाई न दे उसकी आंखे बनकर उसकी मां और चार दोस्तो ने ऐसा जतन किया कि अब चारों दोस्त सिविल सेवा परिक्षा में टाप कर गए है दरअसल हम बात यमुनानगर के अंकुरजीत की कर रहे है जो शहर से 55 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में रह कर इस परिक्षा में कामयाबी हासिल की। बता दे कि अुकंरजीत को बचपन से ही कम दिखाई देता था, लेकिन उसके दीमाग में उसकी मां ने ऐसी रोशनी भरी कि उसने कभी भी किसी काम में हार नही मानी। हालाकि अंकुरजीत ने गांव के ही एक सरकारी स्कूल में परिक्षा शुरू की और बाद में उसने यमुनानगर के एक निजी स्कूल में 12वी की परिक्षा दी जिसमे उसने पहला स्थान हासिल किया, लेकिन अंकुरजीत के मन में देश की सेवा का जज्बा था और उसने 12वी की परिक्षा पास करने के बाद आईआईटी रूडकी में दाखिला लिया और बीटेक पास किया। इसके बाद उसने सिविल सेवा की परिक्षा की तैयारी की हालाकि अंकुरजीत पहली बार तो सफलता हासिल नही कर सका, लेकिन वहां अंकुरजीत सहित उसके चार दोस्तों ने मिलकर इस मुकाम को हासिल करने की मन में ठान ली। रूडकी में तो दोस्तों का साथ लेकिन घर आकर उसकी मां ही उसकी आंखे बन कर उसका साथ देती रही। अंकुरजीत भी होनहार था और उसने अपने मोबाइल व लैपटाप में ऐसा सोफटवेयर डाला जोकि वायस के अनुसार चलता था हर अक्षर उसे सुनाई देता था। अंकुरजीत की उंगलिया भी लैपटाप पर दौडती और मां जो भी उसे बोलकर बताती अंकुरजीत उसे तुरंत अपने दीमाग में बिठा लेता और उसे अंडर लाइन करवाने के बाद उस पर ध्यान देता घर पर बैठकर अंकुरजीत ने मां की आँखों से पूरे विषयों को पूरी तरहा से पढ़ लिया। एक बार तो वह मुकाम हासिल नही कर पाया, लेकिन दूसरी बार भी उसने जो चाहा वह उसे नही मिला।लेकिन तीसरी बार जब उसने वर्ष 2017 में सिविल सेवा की परिक्षा दी तो 414वां रेंक को हासिल कर एक रिकार्ड कायम कर दिया।
बेटे की इस कामयाबी से अंकुरजीत की माँ बेहद खुश है। इतनी खुश कि उनके पास अपने बेटे की इस कामयाबी के लिए शब्द ही नहीं है। बेटे की सफलता की चमक माँ की आँखों में साफ़ झलक रही थी।