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करनाल हवाई अड्डे के लिए जमीन चाहिए पुराने अधिग्रहण कानून के तहत ही देंगे किसान

चंडीगढ,25मई। हरियाणा सरकार को अब यह समझ लेना होगा कि पुराने भूमि अधिग्रहण कानून के स्थान पर लाई गई नई भूमि खरीद नीति को भूमि मालिक नाकाम साबित करने जा रहे है। ताजा मामला करनाल हवाई अड्डे के लिए भूमि हासिल करने का है। राज्य सरकार चाहती है कि उसे 280 एकड भूमि इस तरह मिल जाए जिसमें मुआवजा तय करने में न तो कलक्टर रेट या बाजार दर को आधार बनाना पडे और न ही भूमि मालिक के पुनर्वास की ज्म्मिेदारी हो। लेकिन करनाल कि किसानों ने इस भूमि खरीद नीति कों नामंजूर कर पुराने भूमि अधिग्रहण कानून के तहत ही उन्हें कीमत अदा करने की तांग की है। किसान अपनी मांग को लेकर आंदोलन के लिए भी तैयार है।

 

 

करनाल हवाई अड्डे के लिए प्रस्तावित भूमि के मालिक किसानों ने शुक्रवार को यहां पत्रकारों के सामने यह मांग रखी। उन्होंने का कि वे हरियाणा के मुख्यमंत्री के सामने भी चार बार अपनी यह मांग रख चुके है। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने कहा कि अब वे अपनी मांग मनवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास भी जायेंगे क्योंकि उन्होंने मोदी के नाम पर ही विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिए थे।

 

 

किसान इन्द्रप्रीत सिंह और साथियों ने पत्रकारों से बातचीत में अपनी तीन प्रमुख मांगें रखी। उन्होंने कहा कि पहली मांग तो यह है कि सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा दर का प्रसताव अपनी ओर से रखे। इससे यह स्पष्ट होगा कि सरकार उनको कितनी कीमत देना चाहती है। सरकार की नई भूमि खरीद नीति में कोई दर स्पष्ट नहीं है और सरकार औने-पौने दामों में भूमि ले सकती है। सरकार की इस मनमानी कि खिलाफ फिर कोई अपील की व्यवस्था भी नहीं है। किसानों ने दूसरी मांग यह रखी कि भूमि अधिग्रहण की इस प्रक्रिया में कोई एग्रीगेटर नहीं होना चाहिए। एग्रीगेटर का मतलब कमीशन एजेंट है और जब सौदा सरकार व किसानों के बीच सीधे तौर पर हो रहा है तो कमीशन देने की जरूरत ही क्या है? किसानों ने तीसरी मांग यह रखी कि अधिग्रहण के साथ ही भूमि मालिक के परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएं।

 

 

उन्होंने कहा कि सभी किसान उम्मीद करते हैं कि करनाल में सम्पूर्ण हवाई अड्डा बनाया जाएगा। मनोहर लाल खट्टर ने भी मुख्यमंत्री बनते ही कहा था कि करनाल हवाई अड्डे का काम आगे बढायेंगे लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं किया जा सका है। साथ स्मपूर्ण हवाई अड्डा बनाए जाने पर ही संदेह छाया हुआ है। आरटीआई जवाब और सम्बन्धित पोर्टल पर मौजूदा हवाई पट्टी का विस्तार ही प्रस्तावित बताया जा रहा है। साथ ही प्रारम्भ में इस प्रोजेक्ट के लिए 18 एकड जमीन प्रस्तावित की गई थी। वर्ष 2017 में इसे बढाकर 28 एकड कर दिया गया और अब इसे 280 एकड कर दिया गया है। यह समझ से बाहर है कि सरकार को इतनी अधिक जमीन की जरूरत क्यों है? उन्होंने कहा कि सरकार भूमि का क्षेत्रफल बढाकर नई भूमि खरीद नीति के तहत सत्तर फीसदी किसानों को सहमत कर तीस फीसदी किसानों को बाध्य करना चाहती है। नई नीति में यह व्यवस्था है कि सत्तर फीसदी के सहमत होने पर तीस फीसदी को सहमत मान लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जब राज्य सरकार ने हाल में कुंडली-पलवल-मानेसर रोड के लिए पुराने कानून के तहत ही भूमि का अधिग्रहण किया है और मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रैन प्रोजेक्ट के लिए भूमि की कीमत पांच गुना तक दी है तो करनाल हवाई अड्डे के लिए भूमि का मुआवजा पुराने अधिग्रहण कानून के तहत क्यों तय नहीं किया जा सकता है?

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