चंडीगढ,30अप्रेल। खान क्षेत्र की नीलामी की योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हरियाणा सरकार को कडी फटकार लगाई। योजना के तहत खान क्षेत्र.558.53 हैक्टेयर बताया गया जबकि वास्तव में क्षेत्र 141.76 हैक्टेयर ही मौजूद था। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को निशाने पर रखते हुए कहा कि आप सत्ता में हैं इसलिए लोगों को मूर्ख बनाने और उलटा उन्हीं पर दोष मढने का काम नहीं कर सकते।
जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने हरियाणा सरकार की खान क्षेत्र की नीलामी से सम्बन्धित उस योजना पर नाराजी जाहिर की जिसमें खान क्षेत्र. 558.53 हैक्टेयर प्रस्तावित किया गया था जबकि क्षेत्र मात्र 141.76 हैक्टेयर ही था।
पीठ ने इसके साथ ही याचिकाकर्ता फर्म को उसकी राशि जमा कराए जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक नौ फीसदी सालाना ब्याज दर के साथ भुगतान करने के आदेश दिए। फर्म ने करनाल जिले में खनन के लिए प्रस्तावित क्षेत्र पर काम शुरू करने से इनकार कर दिया था। हरियाणा सरकार के वकील ने जब यह कहा कि यह फर्म की जिम्मेदारी थी िकवह मालूम करती कि क्या वास्तव में एरिया 558.53 हैक्टेयर है तो पीठ ने नाराजी के साथ कहा कि हर बात के लिए नागरिकों को दोषी ठहराना आसान है क्योंकि आप सत्ता में है। पीठ ने कहा कि विज्ञापन 558.53 हैक्टेयर का था और तो आप 141.76 हैक्टेयर पर कब्जा कैसे दे सकते हैं और उस पर भी कहा जा रहा है कि फर्म को एरिया जांच लेना चाहिए था। आप इस तरह लोगों को मूर्ख नहीं बना सकते। आप राज्य है तो आपकी ड्यूटी है कि विज्ञापन में जितना एरिया दिखाया गया है उतना कब्जा दिया जाना सुनिश्चित करें।
सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार के वकील ने नीलामी की शर्तों का खुलासा किया और बताया कि यह फर्म की ड्यूटी थी कि वह यह पता करे कि वास्तव में एरिया 558.53 हैक्टेयर है भी या नहीं। शर्त के अनुसार यह माना गया कि नीलामी में शामिल होने वाली फर्म ने संभावित क्षेत्र का अपने स्तर पर आकलन कर लिया है। राज्य सरकार किसी भी नीलामी कर्ता को किसी भी समय होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगी। यह भी माना जाता है कि नीलामी में शामिल होने वाली फर्म ने शर्तों व खनन के नियम-कानूनों को समझ लिया है। पीठ ने शर्ते देखने के बाद कहा कि नीलामीकर्ता को क्षेत्र की माप के सर्वे करने की कोई जरूरत नहीं है। वह क्षेत्र में संभावित प्राप्ति का सर्वे ही करेगा। इसके साथ ही पीठ ने जून 2016 का पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का फर्म की याचिका रद्द करने वाला आदेश खारिज कर दिया। फर्म ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।