1973 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के पर्वतीय अंचल के ऊपरी अलकनंदा घाटी के मंडल गांव में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई। उसके बाद यह पहाड़ के अन्य हिमालयी जिलों में फैल गया। सरकार ने जंगल की जमीन को खेल का सामान बनाने वाली एक कंपनी को देने का फैसला किया था। उसके विरोध में ही इस आंदोलन की शुरुआत हुई. उस फैसले का विरोध करने के लिए ग्रामीण विशेष रूप से महिलाएं पेड़ों के चारों तरफ घेरा बनाकर उससे चिपक जाती थीं । इससे पेड़ों को काटना मुश्किल हो गया।
स्थानीय महिलाओं की अगुआई में शुरू हुए इस आंदोलन का प्रसार चंडी प्रसाद भट्ट और उनके एनजीओ ने किया। गांधीवादी विचारक सुंदरलाल बहुगुणा ने इस आंदोलन को दिशा दी और उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से पेड़ों की कटाई रोकने का आदेश देने की अपील की। उसका नतीजा यह हुआ कि पेड़ों की कटाई को बैन कर दिया गया। उत्तर प्रदेश की सफलता के बाद यह आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में फैल गया। धूम सिंह नेगी, बचनी देवी, गौरा देवी और सुदेशा देवी इस आंदोलन से जुड़ी प्रमुख हस्तियां थीं।