चंडीगढ,12फरवरी। हरियाणा के जींद में दो दिन बाद ही भाजपा के राष्ट्ीय अध्यक्ष अमित शाह के स्वागत में निकाली जाने वाली मेगा मोटर साईकिल रैली के बन्द रास्ते खुल गए है। हरियाणा सरकार और जाट आरक्षण के लिए आंदोलनरत अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नेता यशपाल मलिक के बीच रविवार देर रात नई दिल्ली में समझौता होने के बाद रैली के राह की अडचन दूर हो गई। समझौता होने के बाद मलिक ने अपने संगठन द्वारा 15 फरवरी को मोटर साईकिल रैली के साथ ही अपनी ट््ेक्टर-ट्ाॅला रैली रद््द करने का ऐलान कर दिया।
बहरहाल हरियाणा में अक्टूबर 2014 में सत्तारूढ होने के बाद तीन बार कानून-व्यवस्था के मोर्चें पर बडी जोखिम उठाने के बाद भाजपा की मनोहर लाल खट्टर सरकार चैथी बार ऐसी जोखिम का सामना करने से बच गई है। अब मुख्य विपक्षी दल इंडियन नेशनल लोकदल द्वारा काले झंडे या काले गुब्बारे दिखाना और स्वराज इंडिया से जुडे किसान संगठन द्वारा किसानों की समस्याओं को लेकर अर्द्धनग्न प्रदर्शन किया जाना सरकार के काबू में रहेंगे। वर्ष 2016 के फरवरी माह में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान प्रदेश में व्यापक हिंसा और आगजनी की घटनाएं देखीं गई थीं और पहले आर्थिक आधार पर ही आरक्षण देने की बात कर रही खट््टर सरकार जाट संगठनों से जाति आधार पर ही आरक्षण देने का समझौता करने को मजबूर हुई थी। अब हाईकोर्ट की शर्तों के चलते विधानसभा के जरिए दिया गया आरक्षण लागू करने की चुनौती मौजूद है। फरवरी 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान जाट आंदोलनकारियों पर हिंसा व आगजनी के मुकदमे दर्ज किए गए थे। अब जाट संगठनों का मुख्य मुद््दा हर हाल में जाट आरक्षण को लागू करवाना और जाट आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमे हटवाना है।
जाट संगठनों की मुकदमे वापस लेने की मांग पर सरकार कहती रही है कि मुकदमों की वापसी अदालतों की अनुमति पर निर्भर है। सीबीआई को सौंपे गए मुकदमे भी वापस नहीं लिए जा सकते। अब नई दिल्ली में सरकार ने यशपाल मलिक के साथ मुकदमे वापस लेने का समझौता किया है। तो क्या पहले से मौजूद मुकदमे वापस लेने की अडचनें अब दूर हो गई है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट््टर ने संसद में भी जाट आरक्षण विधेयक पारित कराने का समझौता किया हैं। इसका क्या आधार है? क्या सुप्रीम कोर्ट की बाधा दूर हो गई है। इस समझौते पर उठते इन सवालों के अलावा सवाल यह भी है कि क्या हरियाणा में जाट समुदाय पर पकड खोते यशपाल मलिक को फिर बढत दिलाने के लिए ही मोटर साईकिल रैली की योजना बनाई गई और ट्ेक्टर-ट््ाॅला रैली की धमकी के बूते अस्त होते जाट नेता मलिक को फिर चमक दिलाने की योजना को ही अमल में लाया गया। अमित शाह के स्वागत के लिए मोटर साईकिल रैली की व्यावहारिकता पर भी सवाल उठाए गए हैं कि इस रैली से क्या राजनीतिक फायदे होने वाले थे। अब तक तमाम रैलियां बगैर मोटर साईकिल रैली के ही सफल रही हैं तो इतनी बडी दुपहिया वाहन रैली और उसके लिए असंभव समझौते को अंजाम देने के पीछे छिपी हुई चतुराई ही नजर आती है।