फिल्मों में अक्सर देखा होगा कि फांसी की सजा सुनाने के बाद जज साहब पेन का निब तोड़ देते हैं। आपको पता है कि ऐसा क्यों किया जाता है। सजा वाले दिन जल्लाद कैदी के कानों में क्या कहता है? जिस फंदे से कैदी को लटकाया जाता है उसे कौन बनाता है। इन सवालों के जवाब शायद ही पता हो। फांसी की सजा से जुड़े कुछ फैक्ट्स बताते हैं।
भारतीय कानून में फांसी सबसे बड़ी सजा है। सुनवाई के बाद जब जज फांसी की सजा सुनाता है तो फैसले के बाद पेन की निब तोड़ देता है। ऐसा करने के पीछे संवैधानिक वजह है। एक बार फैसला लिख दिए जाने के बाद खुद जज को भी अधिकार नहीं होता है कि वो फैसले को बदल सके। इसके अलावा एक कारण और भी है। माना जाता है कि पेन से किसी की जिंदगी खत्म हुई है इसलिए उसका दोबारा प्रयोग न हो। फांसी देते वक्त जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, डॉक्टर और जल्लाद का होना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में कहा था कि रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों में ही फांसी की सजा दी जा सकती है। निचली अदालतों में फांसी की सजा मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट भी फांसी की सजा पर मुहर लगा दे तो फिर राष्ट्रपति से दया की अपील की जा सकती है। अगर राष्ट्रपति भी अपील को खारिज कर दे तो फांसी दे दी जाती है।
फांसी देते वक्त जल्लाद कैदी के कान में कहता है कि ‘मुझे माफ कर दो। मैं हुक्म का गुलाम हूं। मेरा बस चलता तो आपको जीवन देकर सत्य मार्ग पर चलने की कामना करता’।
कैदी को जिस फंदे पर लटकाया जाता है वो सिर्फ बिहार के बक्सर जेल में कुछ कैदियों द्वारा तैयार किया जाता है।अंग्रेजों के जमाने से ही ऐसी व्यवस्था चली आ रही है।
मनीला रस्सी से फांसी का फंदा बनता है। दरअसल बक्सर जेल में एक मशीन है जिसकी मदद से फांसी का फंदा बनाया जाता है।
आखिरी इच्छा पूछे बगैर किसी कैदी को फांसी नहीं दी जा सकती है।