One Nation, One Election: भारत में चुनावों का चक्र अनवरत चलता रहता है—कभी लोकसभा चुनाव तो कभी राज्यों के विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव। लेकिन “One Nation, One Election” यानी “एक देश-एक चुनाव” की व्यवस्था से इस चक्र में बड़ा बदलाव आने वाला है।
केंद्रीय कैबिनेट द्वारा एक देश-एक चुनाव से संबंधित विधेयकों को मंजूरी मिलने के बाद यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से इस व्यवस्था की वकालत कर रहे हैं, जिसके पीछे विचार है कि चार वर्ष तक शासन-प्रशासन और नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए, जबकि एक वर्ष में चुनावी प्रक्रिया पूरी हो।
क्या है “One Nation, One Election”?
“एक देश-एक चुनाव” का अर्थ है कि संसद (लोकसभा) के चुनाव और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके अतिरिक्त, स्थानीय निकाय चुनाव (नगर निगम, ग्राम पंचायत, आदि) भी एक तय समय सीमा में हो सकते हैं।
आजादी के बाद भारत में चुनावी प्रक्रिया
1952 से 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते थे। लेकिन राज्यों के पुनर्गठन, समय पूर्व विधानसभा भंग होने और राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह चक्र टूट गया। तब से विभिन्न राज्यों के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
वन नेशन-वन इलेक्शन का अर्थव्यवस्था पर असर
1. जीडीपी में वृद्धि
कोविन्द कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, सभी चुनाव एक साथ होने पर भारत की रियल जीडीपी ग्रोथ 1.5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। वित्त वर्ष 2023-24 के संदर्भ में यह 4.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर है। यह राशि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च का एक बड़ा हिस्सा कवर कर सकती है।
2. निवेश में सुधार
लगातार चुनावों के कारण देश में निवेशकों के बीच अनिश्चितता का माहौल बनता है। एक साथ चुनाव से नेशनल ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (निवेश अनुपात) में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
3. सार्वजनिक खर्च में वृद्धि
केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ होने पर सार्वजनिक खर्च में 17.67 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। इसका बड़ा हिस्सा पूंजीगत खर्च के रूप में होगा, जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा और जीडीपी ग्रोथ को गति देगा।
4. महंगाई पर असर
रिपोर्ट के अनुसार, एक देश-एक चुनाव से महंगाई दर में गिरावट अधिक तेज हो सकती है। महंगाई में करीब 1.1 प्रतिशत तक की कमी आने की संभावना है।
5. राजकोषीय घाटा
हालांकि चुनाव के बाद सार्वजनिक खर्च में वृद्धि से राजकोषीय घाटे में 1.28 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। लेकिन इसका सकारात्मक प्रभाव दीर्घकालिक आर्थिक सुधारों के रूप में देखने को मिलेगा।
अन्य देशों में एक साथ चुनाव का मॉडल
अमेरिका: राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव हर चार वर्ष में एक निश्चित तारीख को होते हैं।
फ्रांस, स्वीडन और कनाडा: इन देशों में भी एक निर्धारित समय पर राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव कराए जाते हैं।