सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों द्वारा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से लेकर सुप्रीम कोर्ट प्रशासन पर सवाल उठाना यह दिखाता है कि भारतीय न्यायपालिका को सुधार और बदलाव दोनों की जरूरत है। जजों के इस कदम के बाद मोदी सरकार के लिए देश में लगभग 25 वर्षों से चले आ रहे कॉलेजियम सिस्टम को हटाना आसान हो सकता है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन लोकुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है, अगर ऐसा चलता रहा तो लोकतंत्र को खतरा हो सकता है। यह पहली बार था जब सुप्रीम कोर्ट के जज इस तरह मीडिया के सामने आए हों, जिससे यह बात साफ होती है कि न्यायपालिका में बदलाव की जरूरत है और इससे मोदी सरकार को एक मौका मिल गया है कि वो कॉलेजियम सिस्टम को हटा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक ठहरा चुकी है। NJAC पर ये फैसला 2015 में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में दिया गया था, लेकिन अब जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने ही सवाल उठाया है और उसमें सुधार की सलाह दी है, तो ऐसे में मोदी सरकार कॉलेजियम सिस्टम हटाने की कोशिश कर सकती है। ऐसा पहली बार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने जजों ने न्यायपालिका को बचाने की अपील की है।