प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के मुद्दे पर होने वाली चर्चाओं में प्रतिबंधात्मक के बजाय रचनात्मक रवैया अपनाने की जबरदस्त वकालत करते हुए विभिन्न देशों से आग्रह किया है कि वे “यह न करो या वह न करो” पर ध्यान केंद्रित न करें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, जबकि कुल उत्सर्जन में उसका योगदान पांच फीसदी से भी कम है। उन्होंने कहा, “इसलिए, हम विकास सुनिश्चित करने वाले विभिन्न आवश्यक कारकों को ध्यान में रखते हुए निश्चित रूप से सही रास्ते पर हैं।” मोदी ने कहा, “हम निर्धारित तिथि से नौ साल पहले ही अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने वाला संभवत: पहला जी20 देश हैं।”
उन्होंने कहा कि एकल-उपयोग प्लास्टिक (सिंगल यूज़ प्लास्टिक) के खिलाफ भारत की कार्रवाई को दुनियाभर में मान्यता मिली है और इसके जरिये साफ-सफाई एवं स्वच्छता सुनिश्चित करने की दिशा में काफी प्रगति भी हुई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत अब वैश्विक पहलों में भागीदार बनने से आगे कई पहलों में अग्रणी भूमिका निभाने की ओर बढ़ गया है। उन्होंने कहा, “हमारा सिद्धांत सरल है-चाहे समाज में हो या ऊर्जा मिश्रण के संदर्भ में, विविधता ही सर्वोत्तम विकल्प है। सभी के लिए कोई एक समाधान नहीं है।”
यूक्रेन युद्ध के बाद के दौर में जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों में प्रगति से जुड़े एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा, “यह देखते हुए कि देश अलग-अलग रास्तों पर चल रहे हैं, ऊर्जा परिवर्तन के लिए हमारे रास्ते भी अलग-अलग होंगे।” मोदी ने कहा कि वह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के भविष्य को लेकर ‘बेहद सकारात्मक’ हैं। उन्होंने कहा, “हम प्रतिबंधात्मक की जगह रचनात्मक रवैया अपनाने के लिए अन्य देशों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। सिर्फ ‘यह न करो या वह न करो’ के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हम एक ऐसा दृष्टिकोण लाना चाहते हैं, जो लोगों और राष्ट्रों को जागरूक करे कि वे क्या कर सकते हैं और इस दिशा में उन्हें वित्त, प्रौद्योगिकी एवं अन्य संसाधनों की मदद उपलब्ध कराए।”