Sunday , 24 November 2024

चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 के बाद ISRO का अगला बेहद अहम अंतरिक्ष मिशन होगा शुरू

चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारने के एक पखवाड़े से भी कम समय के अंदर इसरो ने सूर्य के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए ‘आदित्य-एल1’ मिशन को सफलतापूर्वक रवाना कर दिया है.

दोनों मिशन की कामयाबी से इसरो का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। आदित्य एन-1 के बाद इसरो अपने नये प्रोजेक्ट पर लग गया है। यानी जल्द ही एक बार फिर इसरो दुनिया में धूम मचाने अपने नये प्रोजेक्ट के साथ आने वाला है। इसरो का नया मिशन भी देश दुनिया के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने वाला है। जी हां, अब इसरो की नजर अगले मिशन पर है, जिसका मकसद अंतरिक्ष का अध्ययन करना है। ISRO का नया मिशन एक्सपोसैट i होने वाला है।

एक्सर रे पोलारिमीटर सैटेलाइट (एक्पोसैट, XPoSat) देश का पहला समर्पित पोलारिमेट्री मिशन है जो कठिन परिस्थितियों मे भी चमकीले खगोलीय एक्सरे स्रोतों के विभिन्न आयामों का अध्ययन करेगा। इसके अपने नये मिशन के लिए पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष यान भेजा जाएगा जिसमें दो वैज्ञानिक अध्ययन उपकरण यानी पेलोड लगे होंगे।

इसरो ने मिशन की जानकारी देते हुए कहा कि प्राथमिक उपकर,ण ‘पोलिक्स’ (एक्सरे में पोलारिमीटर उपकरण) खगोलीय मूल के 8 से 30 केवी फोटॉन की मध्यम एक्स-रे ऊर्जा रेंज में पोलारिमेट्री मापदंडों (ध्रुवीकरण की डिग्री और कोण) को मापेगा। इसरो के अनुसार, एक्सस्पेक्ट (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) पेलोड 0.8 से 15 केवी की ऊर्जा रेंज में स्पेक्ट्रोस्कोपिककी जानकारी देगाा। बता दें , स्पेक्ट्रोस्कोपिककी भौतिक विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

इसरो के एक अधिकारी ने कहा है कि एक्सपोसैट प्रक्षेपण के लिए हम तैयार हैं। ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे, सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक, पल्सर पवन निहारिका जैसे विभिन्न खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन तंत्र जटिल भौतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है और इसे समझना चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में इसरो क वैज्ञानिकों का कहना है कि हालांकि विभिन्न अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाओं द्वारा प्रचुर मात्रा में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी प्रदान की जाती है, लेकिन ऐसे स्रोतों से उत्सर्जन की सटीक प्रकृति को समझना अभी भी खगोलविदों के लिए चुनौतीपूर्ण है।

इसरो ने कहा, पोलारिमेट्री माप हमारी समझ में दो और आयाम जोड़ते हैं, ध्रुवीकरण की डिग्री और ध्रुवीकरण का कोण और इस प्रकार यह खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन प्रक्रियाओं को समझने का एक उत्कृष्ट तरीका है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *