2018 गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेल और फिर जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण जीत चुके नीरज के करियर का सूरज टोक्यो ओलंपिक खेलों में स्वर्णिम अध्याय लिखने के बाद और भी तेजस्वी हो गया।
रविवार रात को बुडापेस्ट (हंगरी) में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में नीरज ने 88.17 मीटर भाला फेंककर अपने स्वर्ण पदकों की फेहरिस्त को और बड़ा कर दिया। खेल दिवस के कुछ घंटे पहले ही नीरज चोपड़ा विश्व चैंपियनशिप में पीला पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। बृहस्पतिवार को बाकू में 18 साल के रमेशबाबू प्रज्ञाननंदा की फिडे विश्वकप शतरंज प्रतियोगिता के फाइनल में नार्वे के मैग्नस कार्लसन से हार और चुनाव समय पर नहीं कराने और कुछ अन्य अप्रिय कारणों से भारतीय कुश्ती महासंघ के यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग द्वारा निलंबन से भारतीय खेल प्रेमियों में पसरी गहरी निराशा को नीरज के स्वर्ण पदक ने खत्म कर दिया।
नीरज के पिछले प्रदर्शनों को देखें तो लगता है उनकी भुजाओं को शायद कुदरती वरदान प्राप्त है। नीरज जब भी वैश्विक स्तर की प्रतियोगिता में उतरे, उन्होंने भारत को पोडियम पर जगह दिलाई। तिरंगे को आसमान छूने का मौका दिया। ऐसा ही कुछ अमेरिकी तैराक माइकल फेल्प्स के साथ था। तैराकी की दुनिया का एक करिश्मा माने गए फेल्प्स तरणताल में जब भी कूदे, स्वर्ण पदक लेकर ही निकले। पांच ओलंपिक में कुल 28 पदकों ने फेल्प्स को खेल महाकुंभ के इतिहास का सबसे आदर्श और बेहतरीन एथलीट बना दिया है। फेल्प्स की तैरने की अपार क्षमताओं को देख उनके फेफड़ों की जांच की गई थी तो पता चला था कि वे सामान्य से बड़े आकार के हैं, जिससे रक्त में ऑक्सीजन का मिश्रण आम आदमियों के मुकाबले ज्यादा होता था। इससे फेल्प्स की तैरने की क्षमता बढ़ जाती थी। प्राकृतिक कारण जो भी रहा हो लेकिन इस असामान्य तैराक की उपलब्धियों को कम करके नहीं आंका जा सकता।
नीरज को फेल्प्स की तरह सफल होने में अभी काफी वक्त लगेगा लेकिन असंदिग्ध रूप से मौजूदा दौर में वह भारत के सर्वश्रेष्ठ एथलीट हैं। 24 दिसंबर 1997 को हरियाणा के खांदरा में जन्मे नीरज आज भारतीय युवाओं के लिए ‘आइकन’ बनने की काबिलियत रखते हैं। नीरज चोपड़ा हों चाहे प्रज्ञाननंदा, दोनों को भारतीय युवाओं का ‘आइकन’ बनना ही चाहिए। भारत आज दुनिया में सबसे युवा देश कहलाने की योग्यता रखता है। आज भारतीयों की औसत आयु 28 वर्ष है जो चीन से 10 और जर्मनी से 19 साल कम है। ऐसी युवा शक्ति को आज सहेजने की जरूरत है।
युवाओं में मौजूद रचनात्मकताओं को अवसर देना सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन जब तरुणाई विध्वंसक रूप अख्तियार कर लेती है तो गहरी चोट लगती है। नशे की आदतें युवाओं को बिगाड़ रही हैं। खिलाड़ी, फौजी या फिर एक अच्छा संस्कारित सामान्य इंसान बनने के बजाय युवाओं को नकारात्मक हरकतें करते देख दर्द होता है। नीरज चोपड़ा हों, चाहे प्रज्ञाननंदा, उनकी लगन और मेहनत युवा पीढ़ी के लिए नजीर बन सकती है।