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अधिग्रहण की गई जमीन किसान स्वेच्छा से वापस ले सकेंगे – मुख्यमंत्री

चण्डीगढ़, 10 अक्टूबर । विपक्ष और किसान संगठनों के विरोध के मद्देनजर हरियाणा सरकार ने दादूपुर-नलवी नहर परियोजना को भूमिगत जलस्तर बढाने के इरादे से बनाए रखने का फैसला किया है। इसमें किसानों को यह छूट दी गई है कि यदि वे परियोजना के लिए अधिग्रहीत अपनी भूमि वापस लेना चाहेंगे तो उन्हें वह लौटाई जायेगी। लेकिन परियोजना पर आगे खर्च नहीं किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार परियोजना को अब तक के स्वरूप में स्वीकार करने को तैयार है।
          मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मंगलवार शाम यहां कहा कि दादूपुर-नलवी नहर की जमीन को डिनोटिफाई करने का निर्णय किसानों और पूरे प्रदेश के हित में लिया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस निर्णय से जिन भू-मालिकों की जमीन अधिग्रहित हुई थी, उन्हें केवल यह हक दिया गया है कि यदि कोई किसान अपनी ऐसी भूमि को वापस लेने का इच्छुक है तो उसे सरकार भूमि वापस कर देगी। किसी भी किसान को जबरदस्ती जमीन वापस नहीं दी जाएगी। जो किसान अपनी जमीन वापस नहीं लेंगे उनकी जमीन का इस्तेमाल भूमिगत जल की रिचार्जिंग के लिए किया जाएगा।
     पत्रकारों से बतचीत में मनोहर लाल ने कहा कि अदालत ने भूमि अधिग्रहण का मुआवजा बढाया है और इसके कारण इस परियोजना की लागत अत्यधिक बढ़ गई है, जिसके फलस्वरूप इसका लाभ कम और नुकसान ज्यादा है। यह परियोजना वैसे भी व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि 1091 एकड़ उपजाऊ  भूमि को अधिग्रहित करके केवल 300 एकड़ भूमि की ही सिंचाई सम्भव हो पाई है। उन्होंने कहा कि जनता का पैसा बचाना हमारा कर्तव्य है और पिछली सरकारों ने जो काम करने की हिम्मत नहीं की हमने वह काम करके दिखाया है। उन्होंने कहा कि जमीन डिनोटिफाई करने का अर्थ यह है कि अब आगे से इस पर कोई पैसा खर्च नहीं किया जाएगा, लेकिन बनी हुई नहर पर हमें कोई आपत्ति नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने भी वर्ष 2013 की अपनी रिपोर्ट में इस योजना को लाभप्रद नहीं बताया क्योंकि यह नहरी सिंचाई सुविधा प्रदान करने के प्राथमिक उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रही थी।उन्होंने कहा कि अब  पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 167 एकड़ जमीन (लगभग 15 किलोमीटर तक फैली) के लिए मुआवजे की दर में अत्यधिक वृद्धि का आदेश दिया है, जिसके लिए अकेले 167 एकड़ के लिए लगभग 580 करोड़ रुपये का भुगतान करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जिस योजना पर सरकार ने करीब 10 साल पहले 300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए थे और जिसके लिए किसानों से उनकी 1000 एकड़ से अधिक उपजाऊ भूमि खरीदी गई थी, वह केवल लगभग 300 एकड़ भूमि की सिंचाई कर रही है, वह भी केवल खरीफ सीजन के दौरान ही। अतः यह पहले से ही एक अत्यंत महंगा प्रस्ताव है।उन्होंने कहा कि यदि भविष्य में शेष अधिग्रहित भूमि (वर्ष 2005 से आगे) के लिए भी मुआवजे में ऐसी ही वृद्घि होती है तो 167 एकड़ के लिए 580 करोड़ रुपये की वर्तमान बढ़ी हुई राशि 2800 करोड़ रुपये तक जा सकती है।

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