कहते हैं कि शिक्षा हर एक इंसान को जीने की राह दिखाती है। लेकिन ये तस्वीरें इस तर्क के एकदम उल्ट हैं। क्योंकि इन बच्चों की शिक्षा तो इन्हें मौत के रास्ते पर ले जा रही है। अब आप सोच रहे होंगे कि हम ऐसा क्यों बोल रहें। सबसे पहले तो आपको ये बता दें कि तस्वीरें पंचकूला के मोरनी क्षेत्र की है। जहां आनलाइन स्टडी तो इन बच्चों के लिए हथेली पर सरसों उगाने जैसा काम है। क्योंकि आजादी के लगभग 74 साल बाद भी इस इलाको को ढंग का मोबाइल नेटवर्क ही नहीं मिला। सरकारें तो कई बदलीं लेकिन नहीं बदले तो इनके हालात। आनलाइन स्टडी में नेटवर्क ढूंढने के लिएयहां बच्चे ऊंचे पहाड़ की चोटियों पर या फिर पेड़ पर चढ़ कर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। गावँ दापाना में इस पेड़ के नीचे और पेड़ के उपर निगाह मार लीजिए। यहां गांव का एक युवक पेड़ पर इसलिए चढ़ा बैठा है ताकि मोबाइल फोन में ऊंचे पेड़ पर नेटवर्क आ जाए। और वो पेड़ के नीचे बैठे इस गांव के अलग अलग कक्षा के विद्यार्थियों को स्कूल से वदसपदम भेजा गया स्कूल का काम पढ़ कर सुना सके। ऐसा इसलिए क्योंकि इस गांव में किसी भी मोबाइल फोन का नेटवर्क नहीं आता। लिहाजा बच्चों को फोन पर शिक्षकों द्वारा भेजा गया काम मोबाइल में से देखने के लिए किसी ऊंचे पेड़ पर या फिर ऊंचे पहाड़ की चोटी पर चढ़ना पड़ता है और ऐसी पढ़ाई जान पर भी किस कदर भारी पड़ सकती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि युवक के पेड़ पर से फिसल कर नीचे गिरने का भी डर बना रहता है। सिर्फ दपाना गांव का ही ये हाल नहीं है बल्कि इस तरह के और भी कई गांव हैं जहां मोबाइल का नेटवर्क नहीं है।
जानकारी के अनुसार मोरनी ब्लॉक में कुल 83 स्कूल हैं जिनमें करीब साढ़े तीन हजार विद्यार्थी पढ़ते हैं। जिन क्षेत्रों में मोबाइल का नेटवर्क अभी तक नहीं पहुंचा है उन क्षेत्रों में पढ़ने वाले विद्यार्थी तो यह दुआ भी कर रहे हैं कि उनके घरों तक मोबाइल फोन का नेटवर्क पहुंच जाए। ताकि वो कोरोना काल में अपनी पढ़ाई को जारी रख सकें।