कुरूक्षेत्र, 14 दिसंबर – अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में ब्रह्मसरोवर का पावन तट इस बार मिट्टी के अद्भुत शिल्पों से सजा हुआ है। पारंपरिक कला को नया रूप देने वाले शिल्पकार न केवल अपने हुनर से लोगों को आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि अपनी पुश्तैनी कला को आगे बढ़ाने में भी सफल हो रहे हैं। मिट्टी के बर्तन बनाने का यह पारंपरिक कार्य अब आधुनिकता का स्पर्श पाकर एक नई पहचान बना रहा है।
पारंपरिक शिल्प का आधुनिक स्वरूप
महोत्सव में आने वाले शिल्पकार अपने साथ मिट्टी से बनी तस्वीरें, मुखौटे, तुलसी गमले, रिंग बेल फ्लावर पॉट और वॉटर बॉल जैसे अनूठे शिल्प लेकर आए हैं। पहले जहां मिट्टी के बर्तन केवल हाथ से बनाए जाते थे, वहीं अब इन शिल्पकारों ने बिजली के चाक का इस्तेमाल कर उन्हें और आकर्षक रूप दिया है। मिट्टी पर पॉलिश और फिनिशिंग की तकनीक ने इन उत्पादों को बाजार में प्रतिस्पर्धी बना दिया है।
स्वरोजगार के प्रेरक बने शिल्पकार
इन शिल्पकारों का काम न केवल उनके परिवार का सहारा बना है, बल्कि वे दूसरों को भी इस कला में प्रशिक्षित कर रहे हैं। महोत्सव में आने वाले पर्यटक मिट्टी के बर्तन बनाना सीख रहे हैं, जिससे उन्हें भी स्वरोजगार की प्रेरणा मिल रही है। शिल्पकारों का कहना है कि यह काम उनके पूर्वजों से शुरू हुआ था, लेकिन बदलते समय के साथ उन्होंने इसे नए आयाम दिए हैं।
पारिवारिक सहयोग और परंपरा का निर्वाह
इन शिल्पकारों के परिवार के अन्य सदस्य भी इस कार्य में उनका सहयोग करते हैं। बिजली के चाक पर बर्तन बनाना अब उनके काम को न केवल आसान बनाता है, बल्कि इससे उत्पादों की गुणवत्ता और डिजाइन में भी सुधार हुआ है। उनके पिता और दादा ने मिट्टी के बर्तन हाथ के चाक पर बनाए थे, लेकिन नई तकनीकों ने इस पुश्तैनी काम को आधुनिकता के साथ जोड़ा है।
पर्यटकों के बीच लोकप्रियता
महोत्सव में आने वाले पर्यटक इन मिट्टी के शिल्पों के दीवाने हो रहे हैं। इनकी अनूठी डिजाइन और उत्कृष्ट कारीगरी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। मिट्टी से बनी यह कलाकृतियां न केवल सुंदरता बिखेर रही हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रही हैं।