खेलने की कोई उम्र नहीं होती है। बस मन में जज्बा और मजबूत हौसले होने चाहिए। इस बात को कमोद निवासी बुजुर्ग धावक रामफल फौगाट ने अपनी लग्न के बलबूते चरितार्थ किया है। 58 साल की उम्र में रामफल फौगाट ने जब गांव में बुजुर्गाें की दौड़ स्पर्धा देखी तो उनके मन में भी इस तरह की स्पर्धाओं में भाग लेने का ख्याल आया। इसके बाद दो साल तक सेवानिवृत्ति का इंतजार किया और फिर खेल मैदान में उतरकर रामफल फौगाट ने पदकों की झड़ी लगा दी
रामफल फौगाट ने बताया कि 58 वर्ष की उम्र से पहले उनका खेल से जुड़ाव नहीं था। एक दिन गांव में बुजुर्गाों की दौड़ देकर उससे प्रभावित हो गए। इसके बाद उन्होंने धावक बनने की ठानी और अभ्यास करने लगे। 10 साल तक उन्होंने सामान्य दौड़ वाली स्पर्धाओं में सहभागिता निभाई। 70 वर्ष का होने के बाद मैराथन में भाग लेने लगा। उन्होंने कभी भी 5 पांच किलोमीटर से कम की मैराथन में भाग नहीं लिया। उन्होंंने साल 2015 से लेकर अब तक कुल 38 पदक हासिल किए हैं। अब अपने पोता और पोती को भी खेलों के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वे फिलहाल उन्हें प्रतिदिन योग भी करवाते हैं।
अब एशियन मैराथन की तैयारी में जुटे
रामफल फौगाट ने बताया कि कोरोना काल के दौरान भी उन्होंने दौड़ का अभ्यास नहीं छोड़ा। अब वे पिछले दो साल से रोहतक में रहकर अपना अभ्यास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर साल जनवरी में एक एशियन मैराथन होती है। अब वह उसी में अपना प्रदर्शन दिखाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।