Friday , 20 September 2024

Karnal : अब भविष्य में आने वाली समस्याओं के निदान के लिए भी अनुसंधान करें वैज्ञानिक,

अब भविष्य में कृषि क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के निदान के लिए भी वैज्ञानिकों को अनुसंधान करना होगा। केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल में सोमवार को शुरू हुई अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 28वीं राष्ट्रीय कार्यशाला में यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के सहायक महानिदेशक डॉ. वेल मुर्गन ने कही। उन्होंने कहा कि अब सिर्फ सामने आ रही समस्याओं के निदान तक नहीं बल्कि भविष्य में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए भी अनुसंधान को दिशा देनी होगी। तकनीक को विकसित करना होगा।
सीएसएसआरआई के निदेशक डॉ.आरके यादव ने ने देश के विभिन्न हिस्सों से आए शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों की मौजूदगी में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 28वीं राष्ट्रीय कार्यशाला शुरू करते हुए कहा कि अब हमें कृषि को इंडस्ट्री से जोड़ते हुए व्यावसायिक मॉडल विकसित करना होगा। हम किसानों को परंपरागत तरीके समझाते आए हैं, लेकिन अब इससे काम नहीं चलेगा। तकनीक को ग्राउंड वर्क पूरा करना होगा, जिससे किसान सही तरीके से उसका आसानी से इस्तेमाल कर सके। हमें पहले ये जानना होगा कि किसान चाहता क्या है, उसकी मुख्य समस्या क्या है, इसका समाधान क्या हो सकता है, उसी के अनुसार तकनीक विकसित करनी होगी।
उन्होंने ये भी कहा कि जो समस्या देश व विदेश में आ रही हैं, उन पर हम तकनीक विकसित कर रहे हैं, लेकिन हमें अब तरीका बदलना होगा, 10-20 साल आगे क्या होने वाला है, क्या समस्याएं आ सकती हैं, उनका आकलन कर तकनीक विकसित करनी होगी, अपना अनुसंधान उसी दिशा में मोड़ना होगा। उन्होंने सीएसएसआरआई की ओर से विकसित लगभग 20 तकनीकियों की सराहना की।
खराब भूमिगत जल का आकलन करने की मिली जिम्मेदारी
संस्थान के निदेशक डॉ.आरके यादव ने मृदा लवणता को लेकर विकसित तकनीकियों, किस्मों व अन्य उपलब्धियों की विस्तार से चर्चा की। संस्थान की तकनीक को दुनिया के कई देशों में उपयोगी पाया जा रहा है। पूर्व निदेशक डॉ.दिनेश कुमार शर्मा ने भी सुझाव रखे। पूर्व परियोजना समन्वयक और ग्राउंड वाटर सब कमेटी के अध्यक्ष डॉ.एसके गुप्ता ने कहा कि उन्हें हरियाणा सरकार ने राज्य में खराब भूमिगत जल का आकलन करने की जिम्मेदारी दी है, उस पर अध्ययन करके शीघ्र नीति तैयार की जाएगी। इससे पूर्व परियोजना के समन्वयक डॉ. आरएल मीणा ने अपनी दो साल की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद दो तकनीक सत्र आयोजित किए गए। जिसमें देशभर की विभिन्न अनुसंधान केंद्रों, विश्वविद्यालयों से आए वैज्ञानिकों ने अपनी अपनी शोध रिपोर्ट साझा की। 

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