उपरष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि तीन नए कानूनों भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को उसकी औपनिवेशिक विरासत से मुक्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि इनमें सजा के बजाय न्याय पर फोकस किया गया है।
उन्होंने आंध्र प्रदेश और मुंबई उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति कोंडा माधव रेड्डी की 100वीं जयंती मनाने के लिए डाक विशेष कवर जारी किया। इसके बाद उन्होंने उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका तीनों अंग सराहनीय कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह भारत के अभूतपूर्व उदय को उत्प्रेरित कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा, पिछले एक दशक के दौरान न्यायिक प्रणाली में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। इसमें ई-कोर्ट परियोजना और राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के जरिए डिजिटलीकरण पर जोर दिया गया है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इनसे न केवल पारदर्शिता और पहुंच बढ़ी है। बल्कि लंबित मामलों की संख्या में कमी आई है।
उन्होंने कहा कि प्रमुख कानूनी सुधारों में वाणिज्यिक अदालतों की स्थापना और मध्यस्थता कानूनों में संशोधन शामिल हैं। जिसका उद्देश्य तेजी से विवाद का समाधान करना है। धनखड़ ने कहा कि समाज के वंचित वर्गों के लिए कानूनी सहायता तंत्र को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण जैसी पहल की गई है। जिससे सभी के लिए न्याय तक पहुंच सुनिश्चित हो सके।
उन्होंने कहा, ‘कुछ दिन पहले ही तीन नए (आपराधिक संहिता) विधेयक पेश किए गए। उन्हें भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है।’ उन्होंने कहा, ‘नए कानूनों भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को उसकी औपनिवेशिक विरासत से आजाद कर दिया है। जिनमें सजा के बजाय न्याय पर फोकस किया गया है। यह ‘धंधा विधान’ से ‘न्याय विधान’ में एक ऐतिहासिक, क्रांतिकारी बदलाव है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को आपराधिक न्याय विधेयकों को हाल ही मंजूरी दी है। जिससे वे कानून बन गए हैं। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम औपनिवेशिक काल की भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।