नूंह में दंगों के बाद अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई जातीय संहार नहीं थी। गिराए गए कुल निर्माण में से 30 प्रतिशत इमारतें हिंदुओं की थीं। कार्रवाई से पहले कोई जातिगत या धार्मिक सर्वे नहीं किया गया। गुरुग्राम में हटाए गए 100 फीसदी अवैध अतिक्रमण हिंदुओं के थे। जो भी निर्माण हटाए गए, उन पर कार्रवाई से पहले सभी को नोटिस जारी किया गया था।
हरियाणा सरकार ने दावा किया है कि नूंह में हिंसा की घटना में बाद निर्माण गिराने की कार्रवाई में एनजीटी की गाइडलाइंस और हाई कोर्ट के पूर्व में दिए गए फैसलों का पालन किया गया है। नूंह में 70 प्रतिशत मुस्लिमों और 30 प्रतिशत हिंदुओं के निर्माण गिराए गए हैं। हाई कोर्ट ने यह रिपोर्ट रजिस्ट्री ब्रांच से भेजने के निर्देश दिए हैं। नूंह में 31 जुलाई को ब्रजमंडल यात्रा के दौरान हिंसा की घटना हुई थी। इसके बाद दो अगस्त से हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, नूंह प्रशासन और जिला योजना विभाग की टीमों ने नूंह में अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई शुरू की थी। इस दौरान 753 से ज्यादा घर-दुकान, शोरूम, झुग्गियां और होटल गिराए गए। नूंह में प्रशासन ने 37 जगहों पर कार्रवाई कर 57.5 एकड़ जमीन खाली कराई। इनमें 162 स्थायी और 591 अस्थायी निर्माण गिराए गए।
हाई कोर्ट के जस्टिस जी.एस संधावालिया व जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन की बेंच ने सू मोटो नोटिस के आधार पर सात अगस्त को निर्माण गिराने की कार्रवाई पर रोक लगा दी। 11 अगस्त को इस मामले की सुनवाई जब जस्टिस अरुण पल्ली की बेंच के पास गई तो उन्होंने मामला सू मोटो का होने के कारण सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि इसकी सुनवाई चीफ जस्टिस द्वारा की जाएगी।
शुक्रवार को हरियाणा सरकार की तरफ से 400 पन्नों की स्टेटस रिपोर्ट लेकर हाई कोर्ट पहुंचे अतिरिक्त महाधिवक्ता दीप सभरवाल और अन्य सरकारी वकीलों ने जिला उपायुक्त नूंह व गुड़गांव की तरफ से कोर्ट में पक्ष रखना चाहा। चीफ जस्टिस रवि शंकर झा व जस्टिस अरुण पल्ली की पीठ ने सरकार को इस मामले में जवाब हाई कोर्ट में रजिस्ट्री में दायर करने का आदेश दिया।