यमुनानगर से 15 किलोमीटर कि दूरी पर स्थित ऐतिहासिक स्थल कपाल मोचन में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला यह मेला उत्तरी भारत का ऐतिहासिक मेला है जो अपने में कई इतिहास संजोय हुए है।
पौराणिक प्रसंगानुसार एक देव यज्ञ में भगवान शिव अपनी उपेक्षा से क्षुब्ध होकर अनजाने में ब्रह्म कपाली के पाप के भागी बन गए। इससे देवी पार्वती बहुत चिन्तित हुई । इस दोष से मुक्त होने के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती ने चारों धामों और 84 तीर्थो की यात्रा की किन्तु ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त नहीं हो सके।
अन्तत: वे भ्रमण करते हुए कपाल मोचन तीर्थ पहुंचे। कपाल मोचन के पास भवानीपुर में रात्रि के समय एक ब्राह्मण की गऊशाला में आ गए। गुरू, गंगा, गाय, गायत्री की पूजा करने वाली भारतीय संस्कृति में ब्राह्मणों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वे भी देव तुल्य पूजे जाते हैं। ब्राह्मण की हत्या के पाप से कहीं मुक्ति नहीं मिलती, यदि कहीं मुक्ति मिलती है तो कपाल मोचन तीर्थ स्थित ऋण मोचन तीर्थ पर। यहां बने ऋण मोचन सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करके मानव ब्राह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जाता है । कार्तिक मास की पूर्णिमा के अवसर पर कपाल मोचन मेले में अपने पापों से मुक्त होने के उद्घेश्य से दूर-दूर से लोग इस तीर्थ पर आते हैं और ऋण मोचन सरोवर में स्नान करते हैं।
रात्रि में भगवान शिव तो समाधिलीन हो गए परन्तु पार्वती माता को चिन्ता के कारण नींद नहीं आई और उन्होंने मध्यरात्रि को एक गाय-बछड़े के बीच हो रहे वार्तालाप को सुना। बछड़ा अपनी मां गाय से कह रहा था कि प्रात: जब ब्राह्मण मुझे बधिया करेगा तो मैं उसकी हत्या कर दूंगा। इस पर गाय ने कहा कि इससे तुम्हे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा । तब बछड़े ने कहा कि मुझे ब्रह्म हत्या का दोष करने का उपाय पता है । नजदीक के सरोवर में स्नान करने से मेरा ब्रह्म हत्या का दोष दूर हो जाएगा।
प्रात: बधिया करते समय बछड़े ने ब्राह्मण को मार दिया। ब्रह्म हत्या के कारण बछड़े और गाय दोनो का रंग काला हो गया । तब बछड़े ने गाय माता को अपने पीछे चलने के लिए कहा । जब बछड़े ने वर्तमान कपाल मोचन में गाय माता के साथ प्रवेश किया तो सरोवर को पार करते ही दोनों का रंग सफेद हो गया। केवल पावं कीचड़ में तथा सींग पानी से ऊपर होने के कारण उनका रंग काला रह गया।
इसी प्रकार पार्वती जी के कहने पर शिव द्धारा सरोवर में स्नान करने पर उनकी ब्रह्म कपाली का दोष दूर हो गया। शिव ने गाय बछड़े से पूछा कि उन्हें इस तीर्थ का कैसे पता लगा। तब बछडे ने भगवान शिव को अपने पूर्व जन्म में मनुष्य होने तथा इसी स्थान पर तप कर रहे दुर्वासा ऋषि का मजाक उडाने पर दिए गए श्राप से पशु बनने तथा मुक्त होने की कथा विस्तार से सुनाई। ऐसी मान्यता है कि शिव भगवान के दर्शन के पश्चात गाय बछड़ा दोनों पाप से मुक्ति पा कर बैकुंठ धाम चले गए।
इस प्रसंग ने कपाल मोचन तीर्थ स्थित ऋण मोचन सरोवर का महत्व और भी बढ़ गया है । ऐसी मान्यता है कि कलयुग में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर इस सरोवर में स्नान करके हर प्रकार के पापों से मुक्त हो जाएंगे। इसी भावना से देश के कोने-कोने से कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालु ऋण मोचन सरोवर में बडी श्रद्धा भावना से स्नान करने आते हैं।