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पहली बार VVPAT से चुनाव, हिमाचल में 9 नवंबर को वोटिंग

चंडीगढ,12अक्टूबर। पिछले करीब एक साल से ही हिमाचल प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा की सक्रियता बनी हुई थी। चुनावों का समय करीब आते-आते कांग्रेस सरकार ने नई परियोजनाओं की आधारशिला रखने का सिलसिला तेज कर दिया था। भाजपा ने भी अपनी केन्द्र सरकार की ओर से प्रदेश के विकास के लिए बनाई गई योजनाओं का शिलान्यास कर मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास किया। चुनाव आयोग ने गुरूवार को विधानसभा चुनाव की तिथियों को ऐलान कर नई योजनाओं के शिलान्यास और ऐलान के सिलसिले को विराम दे दिया। प्रदेश में गुरूवार को आदर्श आचार संहिता लागू हो गई।
      चुनाव आयोग द्वारा की गई घोषणा के अनुसार आगामी 16अक्टूबर को चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन दाखिले शुरू हो जायेंगे जो कि 23 अक्टूबर तक दाखिल किए जा सकेंगे। इसके बाद नौ नवम्बर को सभी 68 सीटों के लिए मतदान कराया जाएगा। चुनाव परिणाम 18दिसम्बर को घोषित किए जायेंगे। नई योजनाओं के शिलान्यास और घोषणाओं का सिलसिला तो आदर्श आचार संहिता लागू होने के साथ थम गया हैं लेकिन आचार संहिता के दायरे में चुनाव प्रचार जारी रखा जा सकेगा। आचार संहिता के दायरे में चुनावी घोषणापत्र जारी कर मतदाताओं से वायदे किए जा सकेंगे।
   हिमाचल प्रदेश में इस समय कांग्रेस सत्तारूढ है। सत्तारूढ कांग्रेस विकास के नारे के बूते पर लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के लिए प्रयासरत है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस एजेंडे के तहत प्रदेश में कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया है। चुनाव के निकट आते ही पेट्ोल व डीजल पर वैट एक फीसदी कम किया है। लेकिन सत्तारूढ कांग्रेस के सामने पांच चुनौतियां है। पहली चुनौती तो यह है कि प्रदेश का मतदाता प्रत्येक चुनाव में सत्तारूढ दल को बदल देता है। दूसरी चुनौती है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले अदालत में पहुंच गए है। तीसरी चुनौती प्रदेश म महिलाओं के खिलाफ अपराध बढे हैं। चैथी चुनौती नशे के बढते कारोबार की है और पांचवीं चुनौती भितरघात की है।
     एक मात्र प्रतिद्वंद्वी भाजपा इन पांच कमजोरियों का लाभ लेकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए आतुर है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों के परिणामों पर नजर डाली जाए तो दोनों प्रमुख दल बारी-बारी से एक दूसरे को सत्ता से बाहर करते रहे है। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल 68 सीटों में से 43 सीटें हासिल कर सरकार बनाई थी। लेकिन वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 45 सीटें हासिल कर सरकार बनाते हुए कांग्रेस को विपक्ष में बैठा दिया था। लेकिन वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुछ कम अन्तर से 36 सीटें हासिल कर भाजपा को विपक्ष में बैठा दिया था।
     प्रदेश में मतदाताओं के सामाजिक विभाजन को देखा जाए तो राजपूत मतदाता सर्वाधिक 37.5फीसदी है। इसके बाद ब्राह््मण 18फीसदी है। दलित 26.5फीसदी,गढी 1.5फीसदी और अन्य 16.5फीसदी है। यह कुछ रणनीतिक ही दिखाई देता है कि राजपूत बहुल राज्य होने के कारण दोनों दलों की कमान राजपूत नेताओं के हाथ में ही है। भाजपा का नेतृृत्व सही मायने में राजपूत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल करते रहे हैं तो कांग्रेस का नेतृृत्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कर रहे है। दोनों नेताओं का कद इस तरह से स्थापित है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सिर्फ दल संचालन के लिए नियुक्त किए जाते रहे है। चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में वीवीपीएटी मतदान मशीनों का इस्तेमाल किया जाएगा। इन मशीनों में मतदाता को मालूम होगा कि उसका मत चुने गए दल को ही गया है। आयोग ने कुल 7521 मतदान केन्द्र बनाने का ऐलान किया है। प्रत्येक प्रत्याशी की खर्च की सीमा आयोग ने 28 लाख रूपए तय की है।

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