Sunday , 24 November 2024

रंग लाई लुवास के वैज्ञानिको की 2 साल की मेहनत, अब इस Experiment को किया साकार

कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। लुवास के वैज्ञानिगों ने भी एक ऐसा पत्थर उछाला जिससे असंभव से लगने वालेे काम को संभव कर दिखाया। जी हां हिसार के लुवास में मौजूद पशुधन उत्पाद प्रौद्योगिकी के वैज्ञानिकों ने लंबी रिसर्च के बाद आखिरकार सोया मिल्क की सफलता से खोज कर ही डाली। ये खोज उन लोगों के लिए खुशखबरी है, जो दूध की डेयरी से बनाए गए खोया मिल्क को पीने से हिचकते हैं। सोया मिल्क की रिसर्च दूध के अल्टरनेटिव के तौर पर की गई है। वैज्ञानिकों की माने तो इसे जिसे मैंगो और स्ट्राबेरी फ्लेवर्ड डालकर तैयार किया है। जिसकी खासियत यह है कि इसमें फैट नाम मात्र ही होने के साथ-साथ यह पोषण से भी भरपूर है। बल्कि इसमें तो कार्बोहाइड्रेड भी कम है।

डा. नेहा ठाकुर की माने तो सोया मिल्क आसानी से तैयार किया जा सकता है। इसको बनाने की लागत भी कम आती है। इसको देखते हुए हमने इस पर रिसर्च करना चाहा। करीब 2 साल की रिसर्च के बाद हमारे इस दूध को तैयार किया गया है। सोया मिल्क की तरह ही काजू, राइस, कोकोनेट और आल्मंड मिल्क भी तैयार किया जा सकता है। 

वैसे भी सोया मिल्क का इस्तेमाल बहुत पहले से भी किया जाता रहा है। वैज्ञानिक भी सोया मिल्क को सेहत से लिहाज से काफी अच्छा मानते हैं। तो वहीं अब हिसार जिले को भी अब अपना सोया मिल्क उत्पादन का अच्छा स्त्रोत मिल ही गया, जो कि अच्छी बात हैं।

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