देश को कोरोना महामारी से बचाने के लिए सरकार ने भले ही लाकडाउन का सहारा लिया हो। लेकिन कामकाजी लोगों के लिए ये लाॅकडाउन किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा। खासतौर पर बात अगर हथकरघा उद्योग की करें तो इनके लिए लाकडाउन एक बुरा दौर साबित हुआ। क्योंकि एक तो वैसे ही ये उद्योग 2 जून की रोटी के लिए संघर्ष करता है तो बाकी की रही सही कसर लाकडान ने पूरी कर दी। अब तीन महीने के संघर्ष के बाद भी पानीपत का हथकरघा उद्योग वापस पटरी पर लौटता नजर नहीं आ रहा। क्योंकि ये उद्योग काफी हद तक बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के प्रवासी बुनकरों पर निर्भर करता है। जबकि लाकडाउन के दौरान प्रवासी अपने गृह राज्यों को वापस लौट गए थे। आलम ये है कि अब केवल 20 प्रतिशत मजदूर ही काम कर रहे हैं।
पानीपत में तो हथकरघा उद्योग की कई खड़िया बंद पड़ी हैं। वही हजारों यूनिट पानीपत में हथकरघा की लगी हुई है लगभग 3 लाख 50 हजार मजदूर काम करते हैं। इस बारे में जब मजदूरों के इंचार्ज बातचीत हुई तो उन्होंने बकरीद के बाद से उद्योग के वापस पटरी पर लौटने की उम्मीद जताइ। उनका कहना है कि मजदूूरों के लगातार फोन आ रहे हैं और अब वे वापस काम पर लौटना चाहते हैं।
बकरीद के बाद अगर वाकइ में मजदूर वापस काम पर लौटते हैं तो हथकरघा उद्योग को गति मिल सकती है। जो कि इस उद्योग के लिए संजीवनी का काम कर सकती हैं।